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ासी को मैं कलयुग में ‘‘कबीर’’ नाम से प्रकट व प्रसिद्ध हुआ था। यह सब प्रसंग सुनकर सन्त गरीब दास जी ने कहा कि परवरदिगार! यह ज्ञान मुझे कैसे याद रहेगा? तब परमेश्वर जी ने बालक गरीबदास जी को आशीर्वाद दिया और कहा कि मैंने तेरा ज्ञानयोग खोल दिया है। आध्यात्म ज्ञान तेरे अन्तःकरण में डाल दिया है। अब आप असँख्य युगों के पहले से लेकर वर्तमान तथा भविष्य का ज्ञान भी याद रखोगे। दूसरी ओर नीचे पृथ्वी पर शाम के 3 बजे के आसपास अन्य ग्वालों (चरवाहों) को याद आया कि गरीब दास नहीं है, लाओ उठाकर। तब एक पाली गया। उसने दूर से आवाज लगाई कि हे गरीब दास! आजा गायों के सामने खड़ा होकर अपनी बारी कर। हम बहुत देर से खड़े हैं। भक्त गरीबदास जी नहीं बोले और न उठे क्योंकि पृथ्वी पर तो केवल शरीर था। जीवात्मा तो ऊपर के मण्डलों की सैर कर रही थी। उस पाली ने निकट जाकर हाथ से शरीर को हिलाया तो शरीर जमीन पर गिर गया, पहले सुखासन पर स्थिर था। ग्वाले ने देखा तो बालक गरीबदास को मृत पाया। उसने शोर मचाया। अन्य ग्वाले दौडे़ आए। उनमें से एक गाँव छुड़ानी की ओर दौड़ा। छुड़ानी गाँव से गाँव कबलाना के रास्ते पर वह जांडी का वृक्ष था जिसके नीचे परमेश्वर जी जिन्दा रुप में गरीबदास जी तथा अन्य पालियों के साथ बैठे थे। गाँव कबलाना की सीमा के साथ वह खेत सटा हुआ था जो छुड़ानी गाँव का है जो गरीबदास जी का अपना ही खेत था। वह स्थ
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